फ़ुटबाल के इस महाकुम्भ ने सारी दुनिया को अपनी चपेट में ले रखा है,ये नई बात नहीं है,हर ४ वर्ष में ये होता है वही जुनून,वही जश्न,वही आँसू हर बार देखने ko milatee hai है। इस बार नया क्या? कुछ नहीं बस १ऑक्टोपस ज्योतिष राज हैं.जिस ढक्कन को खोल दें उसकी तकदीर का ढक्कन खुल जाता है.क्या बात है।हम भारतीय तो ही नायक पूजा में पारंगत , हमारा भविष्य कोई बतादे आहा ,और क्या चाहिए hamen ,हम तो हैं ही सपेरों ,भिखारियों और जादू-टोने वाले पिछड़े भारतवंशी।
चलो छोडो जी, हम जैसे हैं ठीक हैं लेकिन उन अगड़ों को क्या हुआ ?ये हमारी डगर पे चल के अंध विश्वाशी केसे हो रहे हैं? चलो जाने भी दो यारो, हमें इस से भी क्या?
खुद पे बनती है तो सब करना पड़ता है ,मेरी तो एक ही अरदास है ,दो घंटे के लिए वो आक्टोपस मुझे दे दे .एकदम अभी नहीं, वर्ल्ड कप का फाइनल हो ले उसके बाद वापिस ले लें दरअसल कुछ यक्ष प्रश्न हे जो हमारे रामदेव श्याम देव नहीं सुलझा पा रहे, शायद पॉल देव सुलझा सकें।
Wednesday, July 7, 2010
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