पिछले दिनों मायामृग ने पुस्तक पर्व के नाम पे जो दुष्कृत्य (?) किया उससे साहित्यिक जगत (??)में भारी उद्वेलन उत्पन्न हुआ और इस प्रकरण पर काफी गंभीर (???) वैचारिक (????) विमर्श(?????) भी हुआ।
अब तो ठंडा भी पड़ने लगा है। फिर आप्त वाक्य या अंतिम टिप्पणी एक लतीफे के रूप में -
एक पति था .पति जैसा( पति परम गुरु )पति। और एक पत्नी थी ,पत्नी जैसी (कार्येषु दासी, क्षमा धरित्री ...)पत्नी। तो दोनों साथ रहते, पत्नी खाना बनाती और पति नुक्स निकालते .(भई विवाह सिद्ध अधिकार जो ठहरा )
एक दिन पत्नी ने अंडा बनाया पति ने प्लेट फैंक दी -किसने कहा अंडा बनाने को ?
अगले दिन पत्नी ने आमलेट बनाया ,पति ने थप्पड़ जमाया -मूर्ख ,किसने कहा आमलेट बनाने को?
अगले दिन पत्नी ने एक प्लेट में उबला अंडा और एक प्लेट में आमलेट बना के रखा, पति ने लात मारी -बेवकूफ ये भी नहीं जानती किस अंडे को उबालना होता है और किस का आमलेट बनाना होता है।
जय हो .
Friday, June 11, 2010
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WAH ! BAHUT KHOOB !
ReplyDeleteIS SE BADHIYA TIPPNI YA PRATIKRIYA KYA HO SAKTI HAI !
BADHAI KAHUN YA DHNYAWAD !
सम्मानिया मेम ,
ReplyDeleteप्रणाम !
पहली बार आप के ब्लॉग पे आने का अवसर प्राप्त हुआ , achcha लगा ,
सादर
very good.Samajha ne wale samajha gaye aaapne bahut accha example diya.Or kya
ReplyDeletechahiye kalam ki bhasa bahut satik or
factual ha.