Wednesday, July 21, 2010

आज जनसत्ता में आलेख पढ़ा.आलेख जिस विषय पर था वो अलग बात है.उसकी १पंक्ति ने मुझे उद्वैलित कर दिया.वक्तव्य लेखक का नहीं किसी नेता(भारत भाग्य विधाता,जय हो)का है कि'अपनी पसंद का साथ केवल वेश्याएं चुनती है.'धन्य हैं हमारे समाज के सारथी और धन्य हैं उनके उदगार .
वक्तव्य अपने आप में इतना हास्यास्पद है कि आप उनके पिछड़े विचारों पर गुस्सा होने किजगह उनकी अज्ञानता पर हंसा जा सकता हाई बाद को चाहे स्त्री कि दारुण दशा पे रो लें.
महोदय,क्या आप मेरा ज्ञानवर्धन करेंगे कि विश्व के किस काल-खंड में स्त्री(चाहे वह देह्जीवा रही हो,नगर वधु से लेके हाई सोसाइटी escorts हो,)इतनी मुक्त रही है कि अपनी देह का ग्राहक अपनी मर्जी से चुन सके?पुरुष सदैव ही उसका स्वामी रहा है कि फिर चाहे भुजबल से तो कभी धनबल से उस का उपभोग कर सके.अंतिम बात मेरी नहीं, घुघूति बासूती की-"कभी आपने 'हसबेंड' और 'एनीमल हसबेंड्री' शब्दों के आपस में सम्बन्ध के बारे में सोचा है "

Friday, July 9, 2010

फ़ुटबाल के इस महाकुम्भ ने सारी दुनिया को अपनी चपेट में ले रखा है,ये नई बात नहीं है,हर ४ वर्ष में ये होता है वही जुनून,वही जश्न,वही आँसू हर बार देखने ko milatee hai है। इस बार नया क्या? कुछ नहीं बस १ऑक्टोपस ज्योतिष राज हैं।जिस ढक्कन को खोल दें उसकी तकदीर का ढक्कन खुल जाता है.क्या बात है।हम भारतीय तो ही नायक पूजा में पारंगत , हमारा भविष्य कोई बतादे आहा ,और क्या चाहिए hamen ,हम तो हैं ही सपेरों ,भिखारियों और जादू-टोने वाले पिछड़े भारतवंशी।चलो छोडो जी, हम जैसे हैं ठीक हैं लेकिन उन अगड़ों को क्या हुआ ?ये हमारी डगर पे चल के अंध विश्वाशी केसे हो रहे हैं? चलो जाने भी दो यारो, हमें इस से भी क्या?खुद पे बनती है तो सब करना पड़ता है ,मेरी तो एक ही अरदास है ,दो घंटे के लिए वो आक्टोपस मुझे दे दे .एकदम अभी नहीं, वर्ल्ड कप का फाइनल हो ले उसके बाद वापिस ले लें दरअसल कुछ यक्ष प्रश्न हे जो हमारे रामदेव श्याम देव नहीं सुलझा पा रहे, शायद पॉल देव सुलझा सकें।

हाँ तो पाल देव जी, मेरा प्रश्न-

१ वैश्विक गरीबी से अपन को क्या ?भारत की भी चलती रहेगी,मेरी गरीबी कब दूर होगी ?

२ अमेरीका की दादागिरी तो कब से चल रही है, अब ब्रह्मपुत्र को अपनी और मोड़ के चीन ने भी भारत के विरूद्ध पर्यावरण युद्ध का एलान कर दिया कल से दादागिरी भी करेगा, कर लेने दो, जो करेगा सो भरेगा, पाल बाबा आप ये बताओ मेरी बहू के विरूद्ध मेरी दादागिरी कब चलेगी ?

३ सद्दाम हुसैन को तो उसके घृणित कृत्य के लिए खुलेआम फांसी दे दी .चीन का कमुनिस्ट फासीवादी रवैया कब ख़त्म होगा
४ सारी दुनिया में आणविक हथियार धड़ल्ले से बनते हैं ,बेचारा पाकिस्तान तो अमरीका के भरोसे काम चला रहा है, ठीक भी है पञ्चशील क़ी ठठरी कोई कब तक लादे घूम सकता है। अपनी जान सबको प्यारी हे ,जब सारी दुनिया में येही हो रहा है तो हमारे छोटे लल्ला को तमंचा बनाने क़ी इजाज़त काहे नहीं मिलती?पाल बाबा उपाय हो तो बताय देवो ।

५।वैश्विक मंदी कब ख़त्म होगी और राजनीति का भ्रष्ट व्यवसाय मंदी में कब आयेगा?

६ हम जानते हैं भारत से जाति वाद नेता लोग अपने स्वार्थ की खातिर नहीं हटाने देते हैं पर दुनिया से नस्ल वाद कब मिटेगा ये तो बतादो।

७।ये बात कोई ज्यादा मतलब क़ी तो नहीं है फिर भी चाहो तो बता दो - हिंदी के साहित्यकार एक दूसरे क़ी टांग खिंचाई कब बंद करेंगे?

जय बाबा पालदेव क़ी ,जैसी स्पेन क़ी सुनी सबकी सुनना

Thursday, July 8, 2010

सारी दुनिया में आणविक हथियार धड़ल्ले से बनते हैं ,बेचारा पाकिस्तान तो अमरीका के भरोसे काम चला रहा है, ठीक भी है पञ्चशील क़ी ठठरी कोई कब तक लादे घूम सकता है। अपनी जान सबको प्यारी हे ,जब सारी दुनिया में येही हो रहा है तो हमारे छोटे लल्ला को तमंचा बनाने क़ी इजाज़त काहे नहीं मिलती?पाल बाबा उपाय हो तो बताय देवो .
५.वैश्विक मंदी कब ख़त्म होगी और राजनीति का भ्रष्ट व्यवसाय मंदी में कब आयेगा?
६ हम जानते हैं भारत से जाति वाद नेता लोग अपने स्वार्थ की खातिर नहीं हटाने देते हैं पर दुनिया से नस्ल वाद कब मिटेगा ये तो बतादो.
७.ये बात कोई ज्यादा मतलब क़ी तो नहीं है फिर भी चाहो तो बता दो - हिंदी के साहित्यकार एक दूसरे क़ी टांग खिंचाई कब बंद करेंगे?
जय बाबा पालदेव क़ी ,जैसी स्पेन क़ी सुनी सबकी सुनना






हाँ तो पाल देव जी, मेरा प्रश्न- 1

1 वैश्विक गरीबी से अपन को क्या ?भारत की भी चलती रहेगी,मेरी गरीबी कब दूर होगी ?

अमेरीका की दादागिरी तो कब से चल रही है, अब ब्रह्मपुत्र को अपनी और मोड़ के चीन ने भी भारत के विरूद्ध पर्यावरण युद्ध का एलान कर दिया कल से दादागिरी भी करेगा, कर लेने दो, जो करेगा सो भरेगा, पाल बाबा आप ये बताओ मेरी बहू के विरूद्ध मेरी दादागिरी कब चलेगी ?

सद्दाम हुसैन को तो उसके घृणित कृत्य के लिए खुलेआम फांसी दे दी .चीन का कमुनिस्ट फासीवादी रवैया कब ख़त्म होगा

Wednesday, July 7, 2010

फ़ुटबाल के इस महाकुम्भ ने सारी दुनिया को अपनी चपेट में ले रखा है,ये नई बात नहीं है,हर ४ वर्ष में ये होता है वही जुनून,वही जश्न,वही आँसू हर बार देखने ko milatee hai है। इस बार नया क्या? कुछ नहीं बस १ऑक्टोपस ज्योतिष राज हैं.जिस ढक्कन को खोल दें उसकी तकदीर का ढक्कन खुल जाता है.क्या बात है।हम भारतीय तो ही नायक पूजा में पारंगत , हमारा भविष्य कोई बतादे आहा ,और क्या चाहिए hamen ,हम तो हैं ही सपेरों ,भिखारियों और जादू-टोने वाले पिछड़े भारतवंशी।
चलो छोडो जी, हम जैसे हैं ठीक हैं लेकिन उन अगड़ों को क्या हुआ ?ये हमारी डगर पे चल के अंध विश्वाशी केसे हो रहे हैं? चलो जाने भी दो यारो, हमें इस से भी क्या?
खुद पे बनती है तो सब करना पड़ता है ,मेरी तो एक ही अरदास है ,दो घंटे के लिए वो आक्टोपस मुझे दे दे .एकदम अभी नहीं, वर्ल्ड कप का फाइनल हो ले उसके बाद वापिस ले लें दरअसल कुछ यक्ष प्रश्न हे जो हमारे रामदेव श्याम देव नहीं सुलझा पा रहे, शायद पॉल देव सुलझा सकें।