Thursday, April 14, 2011

विष्णु या उसके अवतार राम और कृष्ण जैसे,सुन्दर,कुलशील,नागरी गुणों से युक्त,वैभवशाली,परम प्रतापी,चक्रवर्ती राजा के स्थान पर आज भी हर कन्या उस औघड,अवधूत ,श्न्सान वासी,फक्कड शिव की आराधना क्यों करती है.इस पर विचार किया है कभी.क्या है उसके पास?बर्फीले हिमालय की कंदराओं में ठिकाना.न ठीक से वस्त्र पहनते हैं न कोई दिशाओं में फैला साम्राज्य है.साथी भी है ती उन्ही की तरह उबड-खाबड.कभी किसी राक्षस को वर दे के पंगा ले लेते हैं तो कभी कामदेव को मार के सृष्टि परमपरा को ही खतरे में डाल देते है.कभी दक्ष के यग्य में जाके सारे प्रभु-वर्ग को ही ललकार उठते है.तीसरी आँख खुल गई तो गडबड और डांस शुरू कर दिया तो भी जान सांसत में. और भोले इतने कि कोई भी फायदा उठा ले. कोई अमर हो रहा है तो कोई खुद का पीछा छुड़ाने को उन्हें ज़हर पीने को उकसा रहा है .फिर भी वहीँ क्यों ...
इसलिए कि स्त्री के सम्मान और निजी अस्मिता की रक्षा का जो बोध शिव को है वो किसी अन्य को नहीं.उन्होंने न सती को राज-पात दिया न पारवती को.बस स्वयं को पूरी तरह समर्पित किया.
राम की तरह वे किसी प्रवाद के चलते अपनी पत्नि को त्यागते नहीं बल्कि उसका अपमान करने वाले के विध्वंस पर उतर आते हैं.जीवित पत्नि को त्यागना तो अलग वो उसके शव को भी बहुत पीड़ा के बॉस देह से उतरते हैं.
कन्हैया जी की तरह रास लीला रचा के मोहित करना उन्हें नहीं आता किन्तु उनकी एकनिष्ठता की पराकाष्ठा है कि उन्हें बेहद प्रेम करने वाली पारवती से भी वे बहुत परीक्षा के पश्चात विवाह करते है ककि प्रथम पत्नि के प्रेम में वे आकंठ डूबे थे.
सारे देवताओं में मात्र शिव ही हैं जो अपनी पत्नि को स्वतंत्र इकाई की तरह सम्मान देते है.पारवती गहनों में सज कर ऐश्वर्य उठाने की बंधनकारी सुविधाओं में न जीती हो किन्तु जब उनको मौज आये वो शेर पर सवार हो कर कहीं भी जा सकती है और किसी भी आततायी का नाश कर सकती है.यही नही ,ये शिव की आधुनिक चेतना ही है जो रौद्र रूपा पत्नि का क्रोधावेग शांत करने के लिये असकी लात अपने सीने पर खा लेते है. "सारी गृहस्थी तेरी जो तुझे रुचे वही कर" का भाव रखने वाले शिव स्त्री के गुणों से इतने अभिभूत है कि उसे अनुभव करने और आदर देने के लिये वो अर्द्धनारीश्वर को भी स्वयं जीते है.
यही कारण है कि हम सब शिव सा पति चाहतीं है कि हमारी निजता का आदर हो,हमें अपने स्वतंत्र बोध के साथ ससम्मान जीने का आनंद मिले.न सीता की तरह अग्निपरीक्षा दे के भी परितक्त्य होना पड़े, न रुक्मिणी की तरह सौतनों का दुख झेलना पड़े और न ही लक्ष्मी जी की तरह चरण दबाने पड़े.
तो क्यों मांगे कोई भी स्त्री राम,कृष्ण और विष्णु सा वर?