Friday, September 24, 2010

कई बार ऐसा होता है कि किसी बहुत अच्छी वस्तु का प्रत्येक पक्ष इतना अच्छा होता है कि उस कि लहर में उसका एक-आध बढ़िया पक्ष उपेक्षित हो जाता है.जब तक कि बहुत ध्यान से ना देखा जाए.इस बात को मैंने फिर से महसूस किया 'रंग दे बसंती' का ये गीत सुनकर.
हम सब जानतें है कि फिल्म बेहद सफल और सच में उत्कृष्ट है.
बेजोड़ निर्देशन,प्रस्तुतीकरण की नवीनता,स्वतान्रता-संग्राम को समसामयिक युवा मन से जोड़ के प्रस्तुत करते विस्तृत एवं जटिल कथानक के बाद भी पटकथा की कसावट आदि के साथ आमिर खान सहित सभी अभिनेताओं का मंजा हुआ अभिनय फिल्म को विश्वसनीय गुणवत्ता देकर हिंदी सिनेमा की बेहतरीन फिल्म बनता है.
फिल्म का संगीत भी अत्यंत लोकप्रिय हुआ,ए.आर.रहमान के फड़कते संगीत में सजे कर्णप्रिय गीत उन दिनों हर किसी की जुबान पर थे और आज भी खूब बजते है.युवा मन को अभिव्यक्त करते सारे गीत,उनकी मस्ती(मस्ती की पाठशाला...),आक्रोश(खलबली है,खलबली..), उनका जिंदादिल हौसला(मोहे रंग दे बसंती....)और कुछ करने का जुनूँ(सूरज को मैं....रूबरू रोशनी) लिए ये गीत युवा दिलों की धड़कन बन गए थे उन दिनों.
फिल्म की कथा में प्रणय के लिए कोई स्थान था भी नहीं और निर्देशक ने उसे आरोपित भी नहीं किया.लेकिन प्रेम कथा फिल्म में है और फिल्म के निर्णायक द्वंद्व में सहायक है इसलिए कहीं भी फिल्म की कथा मुख्य सिर से छेड़छाड़ नहीं करती.
अब मुद्दे की बात,इस प्रेम-कथा के हिस्से मैं एक गीत भी आया है-"तू बिन बताये,मुझे ले चल कहीं...."गीत लगभग अनसुना रह गया क्योंकि उस बसंती मस्ती की पाठशाला में रंग कर हर दर्शक एक रौशनी से रू-ब-रू था,उस झकझोर देने वाली खलबली में डूबा अन्य सभी भावों से अकुंठ. मैं स्वयं भी उन में से एक थी कई बार इस फिल्म को देख डाला था,बिन्स इस गीत को नोटिस में लिए.
लेकिन लगभग १५दिन पहले इस गीत को सुनते हुए मैंने अनुभव किया कि कितना खूबसूरत गीत है यह.
कोमल प्रणय भावनाओं की गहरी पर अंतर्प्रवाही रूमानियत लिए यह गीत प्रेम में संपूर्ण प्रेम को पाकर सम्पूर्ण हो जाने वाली की उदात्त,अद्भुत शांति को जिस कोमल ठहराव से व्यक्त करती है,वह गीत को रूहानियत के छोर तक ले जाती है.
ए.आर.रहमान की सांगीतिक जादूगरी का यह नवानतम पक्ष है.इतनी नरमी एवं आहिस्तगी से रची ये धुन रहमान के संगीत का सिग्नेचर साइन तो नहीं ही है. के मधुर बोलों(मन की गली,तू फुहारों सी आ,भीग जाये मेरे ख्वाबों का कारवां..) को गायक द्वय ने जिस तन्मयता से गाया है,अनुपम है.
गीत सुनते हुए आँखें बंद कर लीजिये,आप प्रेम की उस निविड़ आध्यात्मिक शांति के लोक में पहुँच जायेंगे जहाँ देह पीछे छूट जाती है.
गायकी के तकनीकी पक्ष की दृष्टि से भी गीत बेमिसाल है,क्योंकि बहुत सारे वाद्य यंत्रों के सहारे के बगैर,लो स्केल पर इतनी धीमी,ठहराव वाली संगीत संरचना में गाना बहुत जटिल होता है कि आपको सहारा देने के लिए वहां कुछ नहीं है औए श्रोता के पास निरणय लेने के लिए पर्याप्त अवकाश है.
बहरहाल,मुझे इन दिनों इसगीत ने अपनी मीठी सुरीली लय और कोमल तान की गिरफ्त में ले रखा है,आप भी आनंद उठाइये एवं अपनी राय भी लिखिए.असहमत हो तब भी.