पिछले दिनों के जनसत्ता में सर्वेश्वर दयाल सक्सेना के बारे में एक बढ़िया विशेषण घरेलू उपयोग के लेखक' पढ़ा. इस सामान्य सी बात के माध्यम से कितनी बड़ी बात कही है लेखक ने।सच कितने बड़े-बड़े लेखक है उनके महान ग्रन्थ भी है जिनका सामाजिक साहित्यिक महत्त्व भी कम नहीं है।
हर देश, काल, संस्कृति में कितने युग,कितने आचार्य,कितने, वाद,कितने सिद्धांत हुए जिन पर ढेरों टीकाएँ,शोध हुए अध्ययन पीठ बने है। होना भी चाहिए,आखिर तो साहित्य समाज का दर्पण है,साहित्य एवं लेखक सहेजनीय धरोहर तो है ही।लेकिन कितने कवि लेखक है जो इतने सहज,सम्प्रेश्नीय एवं रुचिर बोघगामी हैं कि घरेलू उपयोग के हो सकते हैं.कबीर कौन सा बहुत पढ़े लिखे थे पर आज भी जब प्रेम दरिया की गहराई की थाह देनी होती है तब केशव नहीं कबीर याद आते हैं जो हमारे संस्कारों की चादर में वो ताना जोड़ गए हैं जो घर के मर्दाने ,दीवानखाने,में ही नहीं बेधड़क घर के भीतरी चौक में भी वापर लिया जाता है. ऐसे
तुलसी है-कितना महान ग्रन्थ है, पांडित्य की भी कमी नहीं, पर घरेलू मोर्चे पर जब भी जरुरत पड़ी झट से तुलसी का उपयोग ले लिया। इसीलिए राम चाहे उनके अजिर बिहारी हो वो जन-जन अजिर बिहारी हैं-चाहे भूत भगाने को हनुमान चालीसा की जरुरत हो या आरती के साथ कृपालु भज मन की।
वैसे मोटे तौर पर देखा जाए तो भक्ति काल के लगभग सारे कवि घरेलु उपयोग के हैं क्योंकि वे लोक की खादमातीलेकर ही उगे पनपे थे सो उन्हें लोकोपयोगी वृक्ष तो बनना ही था
घरेलू उपयोग के कवियों जो भी खासियत-[ जनरंजन, सादगी, पांडित्य से परहेज, लोक से जुड़ाव आदि] हैं-उन सभी को जिस लेखक में हम इकट्ठा पा सकते हैं वो है-अमीर खुसरो। क्या कहावतें,पहेलियाँ, क्या उलटबांसियाँ, मुरकिया लिखी है कमाल है. उनकी जगह तो घर में अमृतधारा की तरह है।
इसके बाद के कवियों की भी बहुत लम्बी सूची है ,जिसका वर्णन था बार
Wednesday, March 24, 2010
Wednesday, March 17, 2010
आज जनसत्ता में एक खबर पढ़ी ;कोलकाता की एक यौनकर्मी के १३ वर्षीय बेटे सज्जाक अली ने राष्ट्रीय फूटबाल चेम्पियन शिप की अंडर १४ के सदस्य के तौर पर खेलते हुए बहुत बढ़िया प्रदर्शन किया।
पढ़ कर मन खट्टा हो गया, ये क्या तरीका है एक उभरते हुए खिलाड़ी की तारीफ करने का।
अपनी रिपोर्ट को प्रभावशाली बनाने के फेर में क्या संवाद दाता ये भी भूल जाते हें कि वो लिख क्या रहे है ?
सज्जाद अली बढ़िया खेला ये क्या उसकी माँ के पेशे का कमाल था, अगर नहीं तो उसका सार्वजनिक वर्णन क्यों?क्या किसी और के साथ ये लिखा जाता है कि डॉक्टर का बेटा बढ़िया खेला या मास्टरनी की बेटी अच्छी खेली?
१३वर्श कि उम्र किशोरावस्था कि सबसे गंभीर उम्र होती है और ऐसे में जबकि एक बालक जो पहले ही अपने सामाजिक जीवन में कई स्तरों पर मखौल उड़ाते विशेषणों में जी रहा है,अपनी कुंठा से ऊपर उठ कर संघर्ष करते हुए एक क्षेत्र विशेष में सिर्फ अपने व्यक्तित्व के बल पर अपनी स्वतंत्र अस्मिता बनाने का प्रयास कर रहा है, यह पढ़ कर उसके कोमल ह्रदय पर क्या प्रभाव पड़ेगा जरा संवेदनशीलता से सोच कर देखे.
आइये, हम सब मीडिया के इस तथाकथित pra shansha कार्य की निंदा करे की भविष्य में ये na हो.
पढ़ कर मन खट्टा हो गया, ये क्या तरीका है एक उभरते हुए खिलाड़ी की तारीफ करने का।
अपनी रिपोर्ट को प्रभावशाली बनाने के फेर में क्या संवाद दाता ये भी भूल जाते हें कि वो लिख क्या रहे है ?
सज्जाद अली बढ़िया खेला ये क्या उसकी माँ के पेशे का कमाल था, अगर नहीं तो उसका सार्वजनिक वर्णन क्यों?क्या किसी और के साथ ये लिखा जाता है कि डॉक्टर का बेटा बढ़िया खेला या मास्टरनी की बेटी अच्छी खेली?
१३वर्श कि उम्र किशोरावस्था कि सबसे गंभीर उम्र होती है और ऐसे में जबकि एक बालक जो पहले ही अपने सामाजिक जीवन में कई स्तरों पर मखौल उड़ाते विशेषणों में जी रहा है,अपनी कुंठा से ऊपर उठ कर संघर्ष करते हुए एक क्षेत्र विशेष में सिर्फ अपने व्यक्तित्व के बल पर अपनी स्वतंत्र अस्मिता बनाने का प्रयास कर रहा है, यह पढ़ कर उसके कोमल ह्रदय पर क्या प्रभाव पड़ेगा जरा संवेदनशीलता से सोच कर देखे.
आइये, हम सब मीडिया के इस तथाकथित pra shansha कार्य की निंदा करे की भविष्य में ये na हो.
Subscribe to:
Posts (Atom)