Tuesday, December 14, 2010

'पापा,जल्दी आ जाना','अनारकली भर के चली','दम है तो पास कर,वर्ना बरदास कर','पाछी आऊं सा','मेहनत मेरी ,रहमत तेरी','देता है रब,जलते हैं सब,..मालूम नहीं क्यों', 'नेकी कर,जूते खा','क्या देखता है गौर से ,आये हैं इंदौर से','लटक मत पटक दूँगी','सपने मत देख,सामने देख','क्या देख रहा है,अच्छा चल देख ले जल्दी से'.
सड़क-चलते वाहनों के पिछवाड़े(सॉरी,शालीन शब्दों में कहें तो पृष्ठ-भाग पर) लिखे कितने ही ऐसे वाक्य हैं जो हमें रोजमर्रा के जीवन में पढ़ने को मिल जाते हैं.कई बार कुछ अनोखे और अप्रचलित वाक्य भी पढ़ने को मिल जाते हैं जैसे पटनी टॉप की यात्रा के समय उधमपुर के पास खड़े एक ट्रक के पीछे पढ़ा-'अगर माँगने से सितारे मिल जाते तो आज आसमान खली नज़र आता'.इसी तरह एक सर्पिल से ट्रोलर के पीछे पढ़ा-'माफ़ करना,साइड जरा लम्बी चाहिए'तो ड्राइवर की विनम्रता पर आदर सा जाग उठा.इसी तरह एक बार खुद पर शर्म भी आई जब एक मलवाहक टैंक के पास से गुजरते हुए नाक-भौं सिकोड़ ही रही थी कि उसका पिछवाडा मेरे आभिजात्य को जीवन की सचाई भरा पाठ पढ़ा गया जहाँ लिखा था-'नसीब अपना-अपना.'
ज़िन्दगी का फलसफा,रास्तों की जोखिम,जिंदगी की अनिश्चितता,उसमें से गुजरते,रीतते-बीतते आम आदमी का जीवन,उसका स्वभाव और अनुभवों की असलियत जैसी तमाम बातें इन पृष्ठांकित वाक्यों में समाई होती है. रास्तों पे चलते हुए हम अनायास ही और कई बार सायास भी,इन्हें पढ़ कर इनका आनंद लेते हैं,पढ़ कर भूल जाते हैं,अक्सर मुस्कुरा देते हैं और कई बार उदास भी हो जाते हैं जब पढ़ते हैं-'पापा,जल्दी आ जाना,मम्मी याद करती है.'
इन वाक्यों में सर्वाधिक प्रचलित वाक्य है-'बुरी नज़र वाले.....' इस अधूरे वाक्य के पीछे के रिक्त स्थान को वाहन-मालिक अपनी-अपनी रूचि और नज़रिए के मुताबिक पूरा कर लेतें हैं.'तेरा मुँह काला'इस समस्या-पूर्ति में सबसे ज्यादा कम आने वाली पंक्ति है जो हमें हर तीसरे वाहन के पीछे धमकाती नज़र आ जाती है.लेकिन इस के अलावा और भी कई वाक्य हैं जो इस समस्या पूर्ति में सहायक सिद्ध होते हैं.'बुरी नज़र वाले,कडुआ ग्रास खा ले,''बुरी नज़र वाले तेरे बच्चे जियें,बड़े होके तेरा खून पियें'(लो जी,इसे कहते हैं दूरदृष्टि भरी दीर्घकालिक बददुआ.)कोई-कोई मदिरा प्रेमी खून की जगह दारु भी पिला देते हैं,कुछ भले उदारवादी मालिक'क्षमा वीरस्य भूषणं'की तर्ज़ पर 'बुरी नज़र वाले,तेरा भी भला'का उदघोष भी करते चलते हैं.इन पृष्ठ वाक्यों में प्रतिशोध,चिड,विरक्ति,औदात्य जैसी अनेक मानवीय प्रवृतियाँ हमारे सामने आ जाती है जो मानव-मन में स्थायी भाव के रूप में विद्यमान रहती है.
किन्तु पिछले दिनों एक वाहन के पीछे इसी वाक्य का तनिक अलग रूप पढ़ने को मिला जो मेरे लिए बिलकुल नवीन था.पढ़ते ही मन अभिभूत हो गया और वाहन-मालिक के उदात्त,उदार व्यक्तित्व के प्रति नतमस्तक हो गया.अद्भुत क्षमा-शांति औए'बहुजन हिताय,बहुजन सुखाय'की भावना निहित है इन पंक्तियों में-'ना किसी की नज़र बुरी,ना किसी का मुँह काला,सबका भला करेगा उपर वाला.' मानव-मात्र की स्वस्ति-कामना,कितना विराट जीवन-दर्शन भरा है इस छोटी सी बात में कि ना कोई बुरा है ना इश्वर किसी का बुरा करेगा.किसी के लिए बुरा मत सोचो,दाता सबका भला करेगा,वाह.काश,हम सब,सारी सरकारें,विशेषकर सारे राजनेता ये बात मन के चलें तो क्या बात हो.
गर हम इन दिलचस्प वाक्यों के रंजन-मोद से बाहर आ कर तथास्त दृष्टि से सोचें तो समझ सकते हैं कि जितने बहुरंगी ये वाक्य हैं,उतनी ही इंसानी फितरत हैं.उनके भाव-अभाव,कुंठा-भय हैं.घर से दूर,अपनों से अलग,मौत के जबड़े में गर्दन डाले खतरनाक मोड़ों से गुज़रते वाहन-चालक की जिंदगी की अनिश्चितता,जरा पलक झपकी कि ना मौत के मुँह में समाते समय लगता है ना किसी का हत्यारा बन के सींखचों के पीछे जाते.सुनसान,ठिठुरती रात में टायर फट्ट,काली सूनी रात में डकैतों का डर,जून की दोपहर वाली चिडचिडी उमस में मीलों लम्बा ट्रेफिक जाम,धूल,पसीना उमस,सवारियों की किट-पिट,शोर.लगातार थकती देह को ना भावनात्मक ना ही दैहिक आराम मिले तो इस कुंठित-वंचित दशा में हर आवाज़ एक ही बात कहे ये हो ही नहीं सकता.जब ये बुरी नज़र वाले की अमंगल कामना करते हैं तब उसके पीछे भी यही असुरक्षा-बोध कम करता है आयर ललकारने चिढाने के पीछे भीयही कुंठित होकर उग्र स्वर में निकालता है.बस,कबीर की तरह कुछ हंस आत्माएँ हैं जो इस माया रुपी गंदले सरोवर में भी स्वच्छ कमल की तरह निर्लिप्त भाव से जीती रहतीं है,भीतर से स्नेहसिक्त किन्तु ऊपर से शुष्क.
तो अगली बार जब भी हम इन पृष्ठ वाक्यों को पढ़ें तो पढ़ कर भूल जाने या मुस्कुरा भर देने से आगे बढ़ कर जिन्दगी के फलसफे को समझें या चालक की मानसिकता पर सहानुभूतिपूर्वक गौर करें तो जीवन की एक छोटी सी लेकिन अलग फाँक के निराले स्वाद को चख पाएँगे.