Thursday, October 7, 2010

नारी तू नारायणी.

आज दिवस है स्त्री-शक्ति के नमन का.क्या विश्व के किसी भी देश में नारी के इतने रूपों को इतने दिन तक नमन किया जाता है,जितना हमारे यहाँ?
स्त्री जो विविध रूपा है.
वो माँ बन कर जगत्जननी सर्जक रूपा है तो असत के नाश के समय वह विद्रोही चेतना जो स्वयं को छिन्नमस्ता बनाने में भी नहीं हिचकती.
वो शाश्वत स्त्री जो ज्ञान दायिनी गायत्री है और वही काम रूपा कामख्या जो जीवन के शाश्वत सत्य को समझती,समझाती है.
वह परिवार की पालन कर्त्री करुणामयी अन्नपूर्णा भी है जो अपनों की तृप्ति में ही तृप्त है और वही विकराल काली भी जो अज्ञान के पथ पर जा रहे अपने ही प्रियतम के वक्ष-स्थल पर पग धर के खड़ी हो जाती है.
वो आदि शिक्षिका जो श्वेत वसना शांति रूपा कलाधात्री शारदा है और जो जीवन में अर्थ के मोल को जानकर अपने परिजनों के लिए वैभव दायिनी लक्ष्मी भी है.
ये स्त्री के लिए ही संभव है कि अपनों के लिए वह कोमलांगना होकर भी अशेष हाथ धारण कर के ज्यादा से ज्यादा कार्य स्वयं कर लेती है.गौरी के रूप में शिव की ऊबड़-खाबड़ गृहस्थी को भी संभल रही है जहाँ मूषक-सर्प,मोर-नेवला,बैल एवं हाथी जैसे प्रतिकूल ध्रुवों को भी संभालती है और अपने गैर-दुनियादार पति की विस्फोटक चेतना में बराबर कदम मिलाती हुई उत्तर आधुनिका भी है.विश्व के प्रथम क्लोन(गणेश.) की आविष्कारक वैज्ञानिक भी एवं आज के अमेरिका से ज्यादा शस्त्र-संपन्न भी.जो निविड़ अन्धकार-पुंज सूर्य के भीतर राधा बनकर दमक रही है.और पञ्च तत्व में अग्नि बनकर.
वो स्त्री जो समझती है कि वैभव भी ज्ञान(विष्णु) के चरण में बैठता है और करुण भी काल के विनाश में काली बन के खड़ा हो जाता है.
इतनी मुक्त स्त्री,जिसकी क्षमता के कारण पुरुष सत्ता को झुकना पड़ता है कि वह सिंह जेसे घातक पशु रुपी चित्तवृतियों को साधकर मूढ़ता रुपी उलूक को भी साध लेती है.तब इस पितृ- सत्ता पोषक संसार को उसे गृह,रक्षाऔर वित्त जैसे महत्वपूर्ण विभाग भी देने पड़ते हैं.ये विभाग ऐसे ही किसी को नहीं मिल जाते ये समस्त विश्व का प्रत्येक राष्ट्र जनता है.किन्तु ये आभार चेतना केवल भारतीय संस्कृति में ही मिलती है अन्य कहीं नहीं.
ज्ञान की चैतन्य ज्योति को धारण करने वाली,सिंहारूढा परम आनंद दायिनी अनंतरूपा स्त्री के इस विराट-आनंद पर्व पर सभी मित्रों को मंगलकामनाएं.

नारी तू नारायणी.

आज दिवस है स्त्री-शक्ति के नमन का.क्या विश्व के किसी भी देश में नारी के इतने रूपों को इतने दिन तक नमन किया जाता है,जितना हमारे यहाँ?
स्त्री जो विविध रूपा है.
वो माँ बन कर जगत्जननी सर्जक रूपा है तो असत के नाश के समय वह विद्रोही चेतना जो स्वयं को छिन्नमस्ता बनाने में भी नहीं हिचकती.
वो शाश्वत स्त्री जो ज्ञान दायिनी गायत्री है और वही काम रूपा कामख्या जो जीवन के शाश्वत सत्य को समझती,समझाती है.
वह परिवार की पालन कर्त्री करुणामयी अन्नपूर्णा भी है जो अपनों की तृप्ति में ही तृप्त है और वही विकराल काली भी जो अज्ञान के पथ पर जा रहे अपने ही प्रियतम के वक्ष-स्थल पर पग धर के खड़ी हो जाती है.
वो आदि शिक्षिका जो श्वेत वसना शांति रूपा कलाधात्री शारदा है और जो जीवन में अर्थ के मोल को जानकर अपने परिजनों के लिए वैभव दायिनी लक्ष्मी भी है.
ये स्त्री के लिए ही संभव है कि अपनों के लिए वह कोमलांगना होकर भी अशेष हाथ धारण कर के ज्यादा से ज्यादा कार्य स्वयं कर लेती है.गौरी के रूप में शिव की ऊबड़-खाबड़ गृहस्थी को भी संभल रही है जहाँ मूषक-सर्प,मोर-नेवला,बैल एवं हाथी जैसे प्रतिकूल ध्रुवों को भी संभालती है और अपने गैर-दुनियादार पति की विस्फोटक चेतना में बराबर कदम मिलाती हुई उत्तर आधुनिका भी है.विश्व के प्रथम क्लोन(गणेश.) की आविष्कारक वैज्ञानिक भी एवं आज के अमेरिका से ज्यादा शस्त्र-संपन्न भी.जो निविड़ अन्धकार-पुंज सूर्य के भीतर राधा बनकर दमक रही है.और पञ्च तत्व में अग्नि बनकर.
वो स्त्री जो समझती है कि वैभव भी ज्ञान(विष्णु) के चरण में बैठता है और करुण भी काल के विनाश में काली बन के खड़ा हो जाता है.
इतनी मुक्त स्त्री,जिसकी क्षमता के कारण पुरुष सत्ता को झुकना पड़ता है कि वह सिंह जेसे घातक पशु रुपी चित्तवृतियों को साधकर मूढ़ता रुपी उलूक को भी साध लेती है.तब इस पितृ- सत्ता पोषक संसार को उसे गृह,रक्षाऔर वित्त जैसे महत्वपूर्ण विभाग भी देने पड़ते हैं.ये विभाग ऐसे ही किसी को नहीं मिल जाते ये समस्त विश्व का प्रत्येक राष्ट्र जनता है.किन्तु ये आभार चेतना केवल भारतीय संस्कृति में ही मिलती है अन्य कहीं नहीं.
ज्ञान की चैतन्य ज्योति को धारण करने वाली,सिंहारूढा परम आनंद दायिनी अनंतरूपा स्त्री के इस विराट-आनंद पर्व पर सभी मित्रों को मंगलकामनाएं.

नवरात्रि