Wednesday, March 17, 2010

आज जनसत्ता में एक खबर पढ़ी ;कोलकाता की एक यौनकर्मी के १३ वर्षीय बेटे सज्जाक अली ने राष्ट्रीय फूटबाल चेम्पियन शिप की अंडर १४ के सदस्य के तौर पर खेलते हुए बहुत बढ़िया प्रदर्शन किया।
पढ़ कर मन खट्टा हो गया, ये क्या तरीका है एक उभरते हुए खिलाड़ी की तारीफ करने का।
अपनी रिपोर्ट को प्रभावशाली बनाने के फेर में क्या संवाद दाता ये भी भूल जाते हें कि वो लिख क्या रहे है ?
सज्जाद अली बढ़िया खेला ये क्या उसकी माँ के पेशे का कमाल था, अगर नहीं तो उसका सार्वजनिक वर्णन क्यों?क्या किसी और के साथ ये लिखा जाता है कि डॉक्टर का बेटा बढ़िया खेला या मास्टरनी की बेटी अच्छी खेली?
१३वर्श कि उम्र किशोरावस्था कि सबसे गंभीर उम्र होती है और ऐसे में जबकि एक बालक जो पहले ही अपने सामाजिक जीवन में कई स्तरों पर मखौल उड़ाते विशेषणों में जी रहा है,अपनी कुंठा से ऊपर उठ कर संघर्ष करते हुए एक क्षेत्र विशेष में सिर्फ अपने व्यक्तित्व के बल पर अपनी स्वतंत्र अस्मिता बनाने का प्रयास कर रहा है, यह पढ़ कर उसके कोमल ह्रदय पर क्या प्रभाव पड़ेगा जरा संवेदनशीलता से सोच कर देखे.
आइये, हम सब मीडिया के इस तथाकथित pra shansha कार्य की निंदा करे की भविष्य में ये na हो.

3 comments:

  1. आपने बहुत महत्वपूर्ण मुद्दा उठाया है. बहुत बार यह होता है. समाचारों को सनसनीखेज बनाने के अतिरिक्त उत्साह में इस बात को विस्मृत कर दिया जाता है कि उनका क्या प्रभाव पड़ेगा. क्यों न आप एक प्रोजेक्ट के रूप में नियमितता से इस दृष्टि से समाचारों का विश्लेषण करें!

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  2. यह कोई नई बात नहीं है , दरअसल संचार माध्यमों की बढती संख्यां और उसके साथ फैला यह विचार की जिसमें 'मसाला' होगा वही बिकेगा ...इस तरह के समाचार सम्प्रेषण का कारण बनते हैं ....
    हुआ यह है की पिछले एक दशक से मीडिया की शिक्षा ही इस तरह से हुई है मानो संचार माध्यम बाज़ार का टूल हों और समाचारों के प्रसारण से सामान्य समाज को कोई फर्क नहीं पढता सिवाय इसके की वो कुछ खास लोगों के व्यापार के बारे में जान जाते हैं .....

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  3. This is a very good matter which you have rosed. The media wants masala new and knows the test of readers. I think you have done a very good step for point out the facts.The media has highlighted the mother of Ali instead of Ali for popularity of news, which is very bad.

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