Wednesday, March 24, 2010

पिछले दिनों के जनसत्ता में सर्वेश्वर दयाल सक्सेना के बारे में एक बढ़िया विशेषण घरेलू उपयोग के लेखक' पढ़ा. इस सामान्य सी बात के माध्यम से कितनी बड़ी बात कही है लेखक ने।सच कितने बड़े-बड़े लेखक है उनके महान ग्रन्थ भी है जिनका सामाजिक साहित्यिक महत्त्व भी कम नहीं है।
हर देश, काल, संस्कृति में कितने युग,कितने आचार्य,कितने, वाद,कितने सिद्धांत हुए जिन पर ढेरों टीकाएँ,शोध हुए अध्ययन पीठ बने है। होना भी चाहिए,आखिर तो साहित्य समाज का दर्पण है,साहित्य एवं लेखक सहेजनीय धरोहर तो है ही।लेकिन कितने कवि लेखक है जो इतने सहज,सम्प्रेश्नीय एवं रुचिर बोघगामी हैं कि घरेलू उपयोग के हो सकते हैं.कबीर कौन सा बहुत पढ़े लिखे थे पर आज भी जब प्रेम दरिया की गहराई की थाह देनी होती है तब केशव नहीं कबीर याद आते हैं जो हमारे संस्कारों की चादर में वो ताना जोड़ गए हैं जो घर के मर्दाने ,दीवानखाने,में ही नहीं बेधड़क घर के भीतरी चौक में भी वापर लिया जाता है. ऐसे
तुलसी है-कितना महान ग्रन्थ है, पांडित्य की भी कमी नहीं, पर घरेलू मोर्चे पर जब भी जरुरत पड़ी झट से तुलसी का उपयोग ले लिया। इसीलिए राम चाहे उनके अजिर बिहारी हो वो जन-जन अजिर बिहारी हैं-चाहे भूत भगाने को हनुमान चालीसा की जरुरत हो या आरती के साथ कृपालु भज मन की।
वैसे मोटे तौर पर देखा जाए तो भक्ति काल के लगभग सारे कवि घरेलु उपयोग के हैं क्योंकि वे लोक की खादमातीलेकर ही उगे पनपे थे सो उन्हें लोकोपयोगी वृक्ष तो बनना ही था
घरेलू उपयोग के कवियों जो भी खासियत-[ जनरंजन, सादगी, पांडित्य से परहेज, लोक से जुड़ाव आदि] हैं-उन सभी को जिस लेखक में हम इकट्ठा पा सकते हैं वो है-अमीर खुसरो। क्या कहावतें,पहेलियाँ, क्या उलटबांसियाँ, मुरकिया लिखी है कमाल है. उनकी जगह तो घर में अमृतधारा की तरह है।

इसके बाद के कवियों की भी बहुत लम्बी सूची है ,जिसका वर्णन था बार

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