Tuesday, August 2, 2011

साहित्य में प्रक्षेपण

"तुलसी नर का क्या,बड़ा समय बड़ा बलवान,
भीलन लूटी द्वारिका,वो ही अर्जुन वो ही बाण."
माँ के मुख से यह दोहा अनगणित बार सुनते हुए बड़े हुए.जब बड़े होके विद्यारथी के रूप में पढ़ा तो यह दोहे जी कही नज़र ही नहीं आये.अब जैसे-जैसे साहित्य में रमते गए तुलसी को भी पढते गए और इस दोहे के प्रति उत्कंठा बढती ही गयी.तुलसी साहित्य के सारे कक्ष,अज्जे-छज्जे,टान्ड-अटारी,मञ्जूषा-पिटारियां,आरी-बारी,ताख-दिवाले ही नहीं चौक-चोबारे,अलियां-गलियां तक छान मारी पर ये मोती कहीं नहीं दिखा.अब जब कि ये भी समझ आ गया है कि साहित्य में प्रक्षेपण क्या होता है.फिर भी मेरी उत्कंठा आज भी वहीं खड़ी है.कोई मनीषी मित्र बताएगा कि इस दोहे के साथ तुलसी बाबा कैसे जुड गए?

1 comment:

  1. तुलसी ने कहा ये तो नही पता मगर ये दोहा सुना हमने भी खूब है । हाँ दोहे का संदर्भ सिर्फ़ इतना है कि जो भी अर्जुन कर रहा था अब तक वो सब कृष्ण की शक्ति और उनके साथ का ही प्रभाव था मगर जैसे ही उन्होने धरा धाम को छोडा उन्ही के साथ उनका प्रभाव भी समाप्त हो गया और अर्जुन को जो घमंड था अपने गांडीव और अपने पौरुष पर वो दूर हो गया और उसे समझ आ गया कि करने कराने वाला तो कोई और ही था वो तो बस निमित्त था।

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